ज्योतिष में चंद्रमा का महत्व

 


ज्योतिष में चंद्रमा का महत्व

चंद्रमा को राशि में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। सभी ग्रहों में सबसे अधिक गति से चलने वाला चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है। चंद्रमा माता, मन, मस्तिष्क, बुद्धिमता, स्वभाव, जननेद्रियों, प्रजनन संबंधी रोगों का कारक है। इसके अलावा चंद्रमा व्यक्ति की भावनाओं पर नियंत्रण रखता है। वह जल तत्व ग्रह है। सभी तरल पदार्थ चंद्रमा के प्रभाव क्षेत्र में आती है। चंद्रमा के मित्र ग्रह सूर्य और बुध है। चंद्रमा का किसी भी ग्रह से दुश्मनी नहीं है। चंद्रमा कर्क राशि का स्वामी है। वहीं चंद्र वृषभ राशि में उच्च स्थान प्राप्त करता है। चंद्र वृश्चिक राशि में होने पर नीच राशि में होते हैं। चंद्र का भाग्य रत्न मोती है। चंद्रमा मंगल, गुरु, शुक्र व शनि से सम संबंध रखते हैं। 

भारतीय वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है और व्यक्ति के जीवन से लेकर विवाह और फिर मृत्यु तक बहुत से क्षेत्रों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए कुंडली में चंद्रमा की स्थिति को बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है। 

भारतीय ज्योतिष पर आधारित दैनिक, साप्ताहिक तथा मासिक भविष्य फल भी व्यक्ति की जन्म के समय की चंद्र राशि के आधार पर ही बताए जाते हैं। चंद्रमा की गति से सर्वदा परिवर्तन होता रहता है। चंद्रमा मन का स्वामी है। 

चंद्र राशि लग्न भाव में हो या चंद्र जन्म राशि में हो या फिर चंद्र लग्न भाव में बली अवस्था में हो तो व्यक्ति को कफ रोग शीघ्र प्रभावित करता है। शरीर  गोलाकार प्रकृति का होता है, मन प्रसन्न कर देने वाली आंखें, विनोदी, अतिकामुक, अस्थिर विचारधारा होता है। यदि जन्म कुण्डली में चंद्रमा मजबूत हो तो व्यक्ति सभी कामों में सफलता प्राप्त करता है और हमेशा  प्रसन्नचित रहता है। उच्च पद प्राप्ति व पदोन्नति, जलोत्पन्न, तरल व श्वेत पदार्थों के कारोबार से लाभ मिलता है। 

चंद्रमा से प्रभावित व्यक्ति

चंद्रमा शरीर के बाईं आंख, गाल, मांस, रक्त बलगम, वायु, स्त्री में दाईं आंख, पेट, भोजन नली, गर्भाश्य, अण्डाशय, मूत्राशय, चंद्र कुण्डली में कमजोर हो तो व्यक्ति को ह्रदय रोग, फेफड़े, दमा, आतिसार, दस्त गुर्दा, बहुमूत्र, पीलिया, गर्भाशय के रोग, माहवारी में अनियमितता, चर्म रोग की समस्याएं होती हैं। अगर चंद्रमा कृष्ण पक्ष का नीच या शत्रु राशि में हो तथा अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो चंद्रमा निर्बल हो जाता है। ऐसी अवस्था में निद्रा व आलस्य घेरे रहता है। व्यक्ति मानसिक तौर पर बेचैन, मन चंचलता से भरा रहता है मन में भय व्याप्त रहता है। 

चन्द्रमा एक शीत और नम ग्रह है और ज्योतिष की गणनाओं के लिए चंद्रमा को स्त्री ग्रह माना जाता है। चन्द्रमा सभी व्यक्ति की कुंडली में मुख्य रूप से माता तथा मन का कारक माना जाता है, इसलिए कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति कुंडली धारक के लिए अति महत्त्वपूर्ण होती है।

-- आचार्य श्याम जी अग्निहोत्री