बसंत पंचमी - सनातन वैदिक संस्कृति

 बसंत पंचमी - सनातन वैदिक संस्कृति

ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः !! 



विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी कि अधिष्ठात्री माता सरस्वती को 'बसंत पंचमी' के शुभ अवसर पर नमन, और सभी का अभिनंदन !!

माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ‘बसंत पंचमी’, 'श्रीपंचमी' और 'सरस्वती पूजा' के रूप में देशभर में मनाया जाता है। इस दिन से बसंत ऋतु का आगमन और शरद ऋतु की विदाई होती है।

बसंत पंचमी को गंगा माता का अवतरण हुआ था, इस दिन गंगा स्नान करने का भी महत्व है।

बसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीराम भीलनी शबरी की कुटिया में पधारे थे।

कुछ लोक-कथाओं के अनुसार बालक भगवान श्रीकृष्ण ने बसंत पंचमी के दिन बालिका भगवती श्रीराधा जी का शृंगार किया था, इसीलिए बसंत पंचमी के दिन से प्रकृति अपना शृंगार कर के स्वयं को संवारती है।

इस दिन से प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, और सरसों के पीले-पीले फूलों से आच्छादित धरती की छटा देखते ही बनती है।

बसंत पंचमी के दिन ही राजा भोज का जन्मदिवस था, जिस पर वे एक बहुत बड़ा उत्सव मनाते हुए अपनी प्रजा के लिए प्रीतिभोज आयोजित करते थे।

बसंत पंचमी के ही दिन ही पृथ्वीराज चौहान ने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह मोहम्मद ग़ोरी के सीने में जा धंसा था। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया था।

१८१६ ई.की बसंत पंचमी के दिन गुरु रामसिंह कूका का जन्म हुआ था। उनके ५० शिष्यों को १७ जनवरी १८७२ को मलेरकोटला में अंग्रेजों ने तोपों के मुंह से बांधकर उड़ा दिया, और बचे हुए १८ शिष्यों को फांसी दे दिया था।


उन्हें मांडले की जेल में भेज दिया गया जहाँ घोर अत्याचार सहकर १८८५ में उन्होने अपना शरीर त्याग दिया।

वसन्त पंचमी के ही दिन हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्म २८-०२-१८९९ को हुआ था, श्रद्धा से लोग उन्हें 'महाप्राण' कहते थे।

माघ के महीने में हुई वर्षा को भी शुभ माना जाता है, कहते हैं कि माघ के माह में हुई वर्षा के जल की एक-एक बूंद अमृत होती है।

चालीस-पचास वर्षों पूर्व तक इस दिन प्रायः सभी मंदिरों में भजन-कीर्तन होते थे, गुलाल लगाई जाती थी और पुष्प-वर्षा होती थी| अब तो श्रद्धालु इसे सरस्वती पूजा के रूप में ही मनाते हैं, क्योंकि मान्यता है कि इसी दिन विद्या और बुद्धि की देवी माँ सरस्वती अपने हाथों में वीणा, पुस्तक व माला लिए अवतरित हुई थीं| माँ सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है| ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं| संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं|

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भारत के विभाजन से पूर्व लाहौर में वीर बालक हकीकत राय की स्मृति में बसंत पंचमी के दिन एक मेला भरता था, वहीं जहाँ वीर बालक हकीकत राय ने धर्म-रक्षार्थ अपने प्राण दिये थे। अब लाहौर में बसंत पंचमी के दिन पतंगें उड़ाई जाती हैं।

बसंत पंचमी के दिन धर्मांधों ने १४ वर्ष की आयु के मासूम हकीकत राय की नाजुक गर्दन धड़ से अलग कर दी थी। हक़ीक़त राय के हाथ में भगवद्गीता थी, उसे हर तरह के प्रलोभन और भय दिये गए, लेकिन उसने अपनी गर्दन कटवाना स्वीकार किया पर अपना धर्म नहीं छोड़ा।

एक मदरसे मे पढता था वह वीर बालक एक दिन साथ के कुछ मुस्लिम बच्चे उसे चिढ़ाने के लिए हिंदू देवी दुर्गा को गाली देने लगे। उस सहनशील बालक ने कहा अगर यह सब मैं बीबी फातिमा के लिए कहूँ तो तुम्हे कैसा लगेगा..? 

इतना सुन कर हल्ला मच गया कि हकीकत ने गाली दी, यह बात बड़े काजी तक पहुँची और फ़ैसला सुनाया गया -- इस्लाम स्वीकार कर लो या मरो। 

उस बालक ने कहा मैंने गलत नही कहा मैं इस्लाम नही स्वीकार करूँगा। उसके पास भगवद्गीता थी जिसमें उसने पढ़ा था कि आत्मा अमर है, यह गीता का ज्ञान ही उसका संबल था।

बाद में यह मामला स्यालकोट के शासक अमीर बेग की अदालत में पहुँचा। हकीकत राय ने दोनों जगह सही बात बता दी । मुल्लाओं की राय ली गई तो उन्होंने कहा कि हकीकत राय के मन में इस्लाम के अपमान का विचार आया, इसीलिए उसे मृत्युदण्ड दिया जाए। लाहौर के सूबेदार की कचहरी में भी यही निर्णय बहाल रहा। तब मुल्लाओं ने कहा कि हकीकत राय इस्लाम धर्म ग्रहण कर ले तो उसके प्राण बच सकते हैं। माता-पिता और पत्नी ने इसे मान लेने का अनुरोध किया, पर हकीकत राय इसके तैयार नहीं हुए।

हकीकत राय का जन्म १७२४ ई. में स्यालकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था, उनके पिता का नाम भागमल खत्री था। हकीकत राय बचपन से ही बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उनकी माता गौराँ देवी अत्यंत धार्मिक स्त्री थीं। हकीकत राय की सगाई बटाला के कादी हट्टी मुहल्ला के रहने वाले उप्पल गौत्र के किशन सिंह खत्री की बेटी लक्ष्मी के साथ हुई थी। कुछ इतिहासकार उसका नाम सावित्री भी बताते हैं। उनकी अभी शादी नहीं हुई थी इसलिए लक्ष्मी अपने मायके में ही रह रही थी। जब हकीकत राय की हत्या की खबर बटाला पहुंची तो सारे शहर में शोक की लहर फैल गई।

लक्ष्मी ने सती होने की इच्छा व्यक्त किया गया । परिवार द्वारा काफी मनाने के बावजूद वो नहीं मानी और शहर से बाहर एक स्थान पर आकर सती हो गई। लाहौर से दो मील पूर्व की ओर हकीकत राय की समाधि बनी हुई थी जहाँ विभाजन से पूर्व हर वर्ष मेला भरा करता था। बसंत पंचमी के दिन भारी संख्या में लोग शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए नतमस्तक होते हैं।


जय सनातन वैदिक संस्कृति| जय भारत| जय माँ सरस्वती| जय श्री राम|