जब मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ही गति पाता है, तो फिर भीष्म जी ने, जो तत्त्वज्ञ जीवनमुक्त महापुरुष थे, दक्षिणायन में शरीर में छोड़कर उत्तरायण की प्रतीक्षा क्यों किया..?

जब मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ही गति पाता है, तो फिर भीष्म जी ने, जो तत्त्वज्ञ जीवनमुक्त महापुरुष थे, दक्षिणायन में शरीर में छोड़कर उत्तरायण की प्रतीक्षा क्यों किया..?


इसका बड़ा ही सुंदर समाधान विद्वानों द्वारा बताया गया है। माना जाता है कि भीष्म जी भगवद्धाम नहीं गए थे, वे 'धौ' नाम वसु (आजान देवता) थे, जो शाप के कारण मृत्युलोक में आये थे। अतः उन्हें देवलोक में जाना था। ऐसा माना जाता है कि दक्षिणायन के समय देवलोक में रात रहती है और वहां के द्वार बंद रहते हैं। 

यदि भीष्मजी दक्षिणायन के समय शरीर छोड़ते, तो उन्हें अपने लोक में प्रवेश करने के लिये बाहर ही प्रतीक्षा करनी पड़ती। उन्हें इच्छामृत्यु की शक्ति प्राप्त होने के कारण उन्होंने वहाँ प्रतीक्षा करने की अपेक्षा यहीं प्रतीक्षा करनी ठीक समझा। एक कारण यह भी था कि यहाँ उन्हें भगवान् श्रीकृष्ण जी के दर्शन होते रहेंगे और सत्संग भी होता रहेगा, जिससे सभी का हित होगा। ऐसा सोचकर उन्होंने अपना शरीर दक्षिणायन में न छोड़कर उत्तरायणमें ही छोड़ा।

- लेखक परम श्रद्धैय स्वामी जी श्री रामसुखदासजी महाराज ) जी द्वारा अध्याय ८ श्लोक संख्या २५ की व्याख्या से लिया गया।