चतुर्थी का चांद क्यों नहीं देखना चाहिए, पौराणिक कथा
चतुर्थी का चांद क्यों नहीं देखना चाहिए, पौराणिक कथा
 

पौराणिक कथा के अनुसार चन्द्रमा को अपने रूप का बहुत अभिमान था।


 

एक बार पार्वती पुत्र गणेश जी को गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रलोक से भोज का आमंत्रण आया। ये तो सभी जानते हैं कि गणेश जी को मोदक अत्यंत प्रिय हैं। भोज कार्यक्रम के दौरान भी उनका ध्यान लड्डुओं पर ही था। गणेश जी ने वहां जी भर कर मोदक खाए और वापस लौटते समय बहुत से मोदक साथ भी ले आए।मोदक बहुत ज्यादा थे, जो उनसे संभाले नहीं गए। उनके हाथ से मोदक गिर गए, गणेश जी के गजमुख एवं लबोदर रूप को देखकर  देखकर चंद्र देव अपनी हंसी नहीं रोक पाए। चन्द्र देव हंस दिये। गणेश जी ने सोचा की मेरी मदद करने की बजाए चन्द्र देव हंस रहे हैं। चंद्रदेव को हंसता देख गणेश जी क्रोधित हो उठे। गणेश जी को गुस्सा आ गया। गणेश जी इससे नाराज हो गये और  क्रोध के आवेग में आकर उन्होंने चंद्रदेव को श्राप दे दिया कि जो भी आज के दिन उन्हें देखेगा उस पर चोरी का झूठा कलंक लग जाएगा।

 

इसके बाद गणेश जी के शाप से चन्द्रमा दुःखी हो गए और घर में छुप कर बैठ गए। 

चंद्रदेव घबरा गए, उन्होंने गणेश जी के चरण पकड़ लिए और यह श्राप वापस लेने का आग्रह किया। दिया गया श्राप वापस ले पाना तो स्वयं गणेश जी के हाथ में नहीं था।

 

चन्द्रमा की दुःखद स्थिति को देखकर देवताओं ने चन्द्रमा को सलाह दिया कि मोदक एवं पकवानों से गणेश जी की पूजा करो। गणेश जी के प्रसन्न होने से शाप से मुक्ति मिलेगी।

 

चन्द्रमा ने गणेश जी की पूजा की और उन्हें प्रसन्न किया। गणेश जी ने कहा कि शाप पूरी तरह समाप्त नहीं होगा ताकि अपनी गलती चन्द्रमा को याद रहे। दुनिया को भी यह ज्ञान मिले की किसी के रूप रंग को देखकर हंसी नहीं उड़ानी चाहिए। इसलिए अब से केवल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो भी चन्द्रमा को देखेगा उसे झूठा कलंक लगेगा। 

 

उस दिन चतुर्थी थी, इसलिए गणेश जी ने उस श्राप को चतुर्थी तक ही सीमित रखा। चतुर्थी का चांद ना देखने के पीछे शायद इसी पौराणिक कथा की ही भूमिका है।

 


 

गणेश चतुर्थी पर ना देखें चाँद वरना होगा अनर्थ; देख लिया तो करें ये उपाय

 

भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी यानी गणेश चतुर्थी जो कि इस बार 13 सितम्‍बर को हैं। इस दिन हर घर में गणेश जी विराजते हैं। अगर आपने चांद का दीदार किया तो आप पर झूठा कलंक लग सकता है। यूं तो चांद को आप पूरे साल कभी भी आसमान में न‍िहार सकते हैं। लेकिन इस रात को चांद देखने से आप पर मिथ्‍या दोष यानी मिथ्‍या कलंक लग सकता है, जैसे कि चोरी का आरोप। शास्‍त्रों में भी ल‍िखा है कि गणेश चतुर्थी को आसमान में चांद को देखना अशुभ होता है।

 

इस बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है।आइए जानते है है कि गणेश चतुथी के दिन चांद को क्‍यों नहीं देखना चाहिए और अगर देख भी लिया तो इससे क्या नुकसान होते हैं और इससे बचने के क्‍या उपाय हैं।

 

 

कृष्‍ण जी भी न बच पाएं थे मिथ्‍या कलंक से

 

गणेश चतुर्थी पर इस रात्रि गलती से भी यदि चंद्र दर्शन से बचना चाह‍िए। शास्त्रों के अनुसार यदि भूल से भी चौथ का चंद्रमा दिख जाए तो श्रीमद् भागवत् के 10वें स्कन्ध के 56-57वें अध्याय में दी गई स्यमंतक मणि की चोरी की कथा का आदरपूर्वक श्रवण करना चाहिए। कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण भी इस तिथि को चंद्र दर्शन करने के पश्चात मिथ्या कलंक से नहीं बच पाए थे। उन पर एक व्यक्ति की हत्या का आरोप लगा था।

 

नारद जी से जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने ऊपर लगे झूठे आरोपों का कारण पूछा तब नारद जी ने यह बताई की, इस दिन गणेश जी ने चन्द्रमा को शाप दिया था।

 

क्या करें अगर हो जाए चतुर्थी पर चंद्र दर्शन

 

गणेश पुराण: अनजाने में गणेश चतुर्थी पर देख लिया है चांद, ऐसे करें बचाव

 

शास्त्रनुसार गणेश चतुर्थी अर्थात कलंक चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन निषेध माना गया हैं। इस दिन चंद्र दर्शन करने से व्यक्ति को एक साल तक मिथ्या कलंक लगता है। भगवान श्री कृष्ण को भी चंद्र दर्शन का मिथ्या कलंक लगने के प्रमाण हमारे शास्त्रों में विस्तार से वर्णित हैं।

 

यदि भूल से भी चौथ का चंद्रमा दिख जाय तो 'श्रीमद् भागवत्' के 10वें स्कन्ध के 56 - 57 वें अध्याय में दी गई 'स्यमंतक मणि की चोरी' की कथा का आदरपूर्वक श्रवण करना चाहिए। भाद्रपद शुक्ल तृतिया और पंचमी के चन्द्रमा का दर्शन करना चाहिए, इससे चौथ को दर्शन हो गए तो उसका ज्यादा खतरा नहीं होगा। मानव ही नहीं पूर्णावतार भगवान श्रीकृष्ण भी इस तिथि को चंद्र दर्शन करने के पश्चात मिथ्या कलंक से नहीं बच पाए थे।

 

ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस मंत्र का अर्थ है

 

‘सुंदर सलोने कुमार! इस मणि के लिए सिंह ने प्रसेन को मारा है और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया है, अतः तुम रोओ मत। अब इस स्यमन्तक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है।’

 

स्यमन्तक मणि के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण को कलंक लगा था और इसी कलंक को मिटाने के लिए भगवान जामवंत की गुफा में गए थे जहां जामवंत के साथ इनका युद्ध और बाद में जामवंत को जब यह अनुभव होता है कि श्रीकृष्ण ही उनके आराध्य भगवान राम हैं तो क्षमा मांगते हैं और अपनी पुत्री जामवंती का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर देते हैं और यह मणि भी विदाई में देते हैं।

 

श्लोक: भाद्रशुक्लचतुथ्र्यायो ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपिवा। अभिशापीभवेच्चन्द्रदर्शनाद्भृशदु:खभाग्॥

 

उपरोक्त श्लोक के अनुसार जो जानबूझ कर अथवा अनजाने में ही भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करेगा, वह अभिशप्त होगा। उसे बहुत दुःख उठाना पडेगा। शास्त्र गणेश पुराण के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख लेने पर कलंक अवश्य लगता हैं। ऐसा गणेश जी का वचन हैं। 

 

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन न करें यदि भूल से चंद्र दर्शन हो जाए तो उसके निवारण के निमित्त निम्नलिखित उपाय करें जिसे चंद्रमा के दर्शन से होने वाले मिथ्या कलंक का ज्यादा खतरा नहीं होगा। दोष मुक्त हो जाएंगे। यदि अज्ञानतावश या जाने-अनजाने चांद दिख जाए तो निम्न मंत्र का पाठ करें। यदि आप पर कोई मिथ्यारोप लगा है तो भी इसका जाप कर सकते हैं।

 

मिथ्या आरोप निवारक मंत्र: सिंह प्रसेनम् अवधात, सिंहो जाम्बवता हत:। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्रास स्वमन्तक॥

 

इसके अतिरिक्त करें यह उपाय

1. भागवत की स्यमंतक मणि की कथा सुने यां पाठ करें।

 

2. सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जांबवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः।।  इस मंत्र का का 21 बार जाप करें।  

 

3. एक पत्थर अपने पड़ोसी की छत पर फैंक दीजिए।

 

4. शाम के समय अपने अतिप्रिय निकट संबंधी से कटु वचन बोलें तत्पश्चात अगले दिन प्रातः उससे से क्षमा मांग लें।

 

5. आईने में अपनी शक्ल देखकर उसे बहते पानी में बहा दें।

 

6. 21 अलग-अलग पेड़-पौधों के पत्ते तोड़कर अपने पास रखें।

 

7. मौली में 21 दूर्वा बांधकर मुकुट बनाएं तथा इस मुकुट को गणपति मंदिर में गणेश जी के सिर पर सजाएं।

 

8. रात के समय मुहं नीचे करके और आंखें बंद करके आकाश में स्थित चंद्रमा को आईना दिखाइए तथा आईने को चौराहे पर ले जाकर फैंक दीजिए।

 

9. गणेश जी की प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति पर 21 लड्डूओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों में बांट दें।

 

10. शाम के समय सूर्यास्त से पहले किसी पात्र में दही में शक्कर फेंट लें, इस घोल को किसी दोने में रख लें तथा इस घोले में अपनी शक्ल देखकर अपनी समस्या मन ही मन कहें तत्पश्चात इस घोल को किसी श्वान को खिला दें।