​दशानन मंदिर रावण पूजा 


दशानन मंदिर रावण पूजा 


कानपुर नगर के शिवाले स्थित कैलाश मंदिर में सैकड़ो वर्ष पुराना दशानन का मंदिर 1868 में स्थापित हुआ था। दशानन मंदिर साल में सिर्फ दशहरे के दिन खोला जाता है और रावण की पूजा जाती है। इस मंदिर में स्थापित दशानन की प्रतिमा को विजयदशमी के दिन पूरे विधि विधान से दुग्ध स्नान कराये जाने के बाद दशानन का फूल माला से श्रंगार कर विधिवत पूजन अर्चन और रावण की स्तुति कर आरती की जाती है।  इस मंदिर में रावण को ज्ञानी और विद्वान मानते हुए उनकी पूजा की जाती है और विजयदशमी की शाम को ही रावण जलने से पहले मंदिर को बंद कर दिया जाता है।


मान्यता है कि रावण का वध करने के लिए भगवान् राम द्वारा संधानित ब्रह्म बाण नाभि में लगने और रावण के धराशाही होने के बीच में कालचक्र ने रावण को पूजने योग्य बना दिया था। इसके बाद ही भगवान् राम ने लक्ष्मण से रावण के पैरो की तरफ जाकर खड़े होने और सम्मान पूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करने के लिए कहा था। ,रावण का यही स्वरूप पूजनीय है और इसी स्वरुप को ध्यान में रखकर कानपुर के दशानन मंदिर में स्थापित रावण के पूजन का विधान है।

विजयदशमी के अवसर पर बड़ी संख्या में भक्त मंदिर में इक्कट्ठा होकर दशानन का पूजन अर्चन करते है। लोगो के अनुसार रावण भगवान शंकर का भक्त होने के साथ रावण महान विद्वान भी था , इसलिए रावण की पूजा साल में एक बार की जाती है। इस मंदिर में रावण की पूजा शुद्ध सरसो के तेल का दीपक जलाकर और शुद्ध खोये की मिठाई चढ़ाकर की जाती है। वही महिलाये तरोई के फूल चढ़ती है इसके पीछे मान्यता है की इससे उनके पति की आयू लम्बी होगी।  
रावण के इस मंदिर को लेकर लोगो का मानना है कि यहाँ मन्नत मांगने से लोगों के मन की मुरादें भी पूरी होती है। दशहरे के दिन ही रावण का जन्मदिन भी मनाया जाता है , रावण को जिस दिन राम के हाथों मोक्ष मिला उसी दिन रावण पैदा भी हुआ था।