थाई मांगुर मछलियों के पालन, विक्रय एवं आयात पर प्रतिबंध

 


 


 

​प्रतिबंधित मत्स्य प्रजाति थाई मांगुर मछलियों के पालन, विक्रय एवं आयात पर प्रतिबंध

 


थाई मांगुर मछलियों के आयात एवं बिक्री पर माननीय राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण, नई दिल्ली द्वारा लगाए गए प्रतिबंध का पूर्ण अनुपालन करते हुए ​प्रतिबंधित मत्स्य प्रजाति थाई मांगुर मछलियों के पालन, विक्रय एवं आयात पर प्रदेश सरकार द्वारा प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।

 

एनजीटी (राष्ट्रीय हरित क्रांति न्यायाधिकरण) ने 22 जनवरी को इस संबंध में निर्देश भी जारी किए है, जिसमें यह कहा गया हैं कि मत्स्य विभाग के अधिकारी टीम बनाकर निरीक्षण करें और जहां भी इस मछली का पालन को हो रहा है उसको नष्ट कराया जाए। निर्देश में यह भी कहा गया हैं कि मछलियों और मत्स्य बीज को नष्ट करने में खर्च होने वाली धनराशि उस व्यक्ति से ली जाए जो इस मछली को पाल रहा हो।

 

शासन के निर्देशों के अनुपालन हेतु एसोसिएशन के सदस्यों को सभी मछली बाजारों में ​प्रतिबंधित मत्स्य प्रजाति थाई मांगुर मछलियों के पालन, विक्रय एवं आयात को प्रतिबंधित कर दिया गया है। निरीक्षण में यदि प्रतिबंधित मत्स्य प्रजाति थाई मांगुर और बिगहेड मछली का स्टॉक अथवा विक्रय पाया जाता है, तो तत्काल उक्त का विनष्टीकरण करने के साथ ही  विनष्टीकरण होने वाले व्यय की धनराशि संबंधित मत्स्य विक्रेता से वसूल की जाएगी एवं उसके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा-270 के तहत कार्रवाई की जाएगी।


 

​थाई मांगुर का वैज्ञानिक नाम क्लेरियस गेरीपाइंस है। थाई मांगुर मत्स्य प्रजातियों की मछली के कारण जल स्वास्थ्य पर खतरे की संभावना को देखते हुए इसके पालन व बिक्री पर रोक लगाया है। माना जाता है कि इन मछलियों के पालन को नियंत्रित और प्रतिबंधित नहीं किया गया, तो कई जलीय वनस्पतियों एवं जलीय जीव इस धरती से विलोपित होने की संभावना है। वही मछली पालक अधिक मुनाफे के चक्कर में तालाबों और नदियों में प्रतिबंधित थाई मांगुर को पालते है, क्योंकि यह मछली चार महीने में ढाई से तीन किलो तक तैयार हो जाती है जो बाजार में करीब 30-40 रुपए किलो मिल जाती है। इस मछली में 80 फीसदी लेड एवं आयरन के तत्व पाए जाते है।

 

इस मछली को वर्ष 1998 में सबसे पहले केरल में बैन किया गया था। उसके बाद भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 देश भर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंधित लगा दिया गया था। 'इसका पालन बाग्लादेश में ज्यादा किया जाता है। वहीं से इस मछली को पूरे देश में भेजा जाता है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 में थाई मांगुर के पालन, विपणन,संर्वधन पर प्रतिबंध लगाया गया था लेकिन इसके बावजूद भी मछली मंडियों में इसकी खुले आम बिक्री हो रही थी।